गन्ना भारत की एक प्रमुख वाणिज्यिक फसल है, जो कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह न केवल किसानों के लिए आय का सशक्त स्रोत है, बल्कि देश के चीनी उद्योग की आधारशिला भी मानी जाती है। गन्ना मुख्य रूप से चीनी, गुड़, इथेनॉल और अल्कोहल उत्पादन के लिए उगाया जाता है। इसके अलावा, यह जैव ईंधन उत्पादन में भी योगदान देता है, यही वजह है कि गन्ना न केवल एक फसल है बल्कि एक बहुउपयोगी संसाधन भी है। भारत ब्राजील के बाद गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक है और उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, बिहार और पंजाब भारत में गन्ना उत्पादन में मुख्य योगदानकर्ता हैं। लगभग 50 लाख हेक्टेयर भूमि पर गन्ने की खेती (Sugarcane farming) की जाती है, जो लाखों किसानों को एक स्थायी जीवन प्रदान करती है।
गन्ने की खेती के लिए पर्यावरण और जलवायु (Environment and Climate for Sugarcane farming)
गन्ना एक लम्बी अवधि वाली (long duration) फसल है, इसे पकने में लगभग 12 से 18 महीने का समय लगता है, जो बोए गए बीज की किस्म पर निर्भर करता है। गन्ना अलग-अलग मौसम में अच्छी तरह उग सकता है, लेकिन इसे खास तौर पर 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। बुवाई के समय 20 से 25 डिग्री और फसल की कटाई के समय 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा माना जाता है। इसके अलावा इसे प्रति वर्ष लगभग 75 से 150 cm (750-1500 mm) वर्षा की आवश्यकता होती है।
गन्ने की खेती के लिए सबसे अच्छी मिट्टी (Best soil for Sugarcane farming)
गन्ने की खेती (Sugarcane farming) के लिए गहरी और अच्छी पानी निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए। गन्ना रेतीली, चिकनी और भारी चिकनी मिट्टी में भी अच्छा उगता है, लेकिन खेत में पानी निकलने और हवा पहुंचने की सुविधा ज़रूरी होती है। अधिक अम्लीय मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।
खेत की तैयारी (Field preparation for Sugarcane farming)
गन्ने की खेती (Sugarcane farming) के लिए खेत की कम से कम दो बार गहरी जुताई करनी चाहिए। एक बार जुताई 20 से 25 सेंटीमीटर गहराई तक करें। फिर मिट्टी के ढेलों को तोड़कर खेत को समतल करने वाले औज़ार से बराबर कर लें।
गन्ने की खेती के लिए बीज दर (Seed rate for Sugarcane farming)
तीन कलियाँ (Three budded setts) वाली गन्ने की फसल के लिए सेट दर (sett rate) 40,000- 60,000 प्रति हेक्टेयर और दो कलियाँ (Two budded sett) वाली गन्ने की फसल के लिए सेट दर (sett rate) 75,000-85,000 प्रति हेक्टेयर तक सही रहती है।
अंतराल और बुवाई की गहराई (Spacing for Sugarcane farming)
गन्ने के पौधों के बीच सही दूरी रखना ज़रूरी है ताकि हवा का आना-जाना और पोषक तत्वों का बंटवारा ठीक से हो सके। पंक्तियों के बीच 90 से 150 सेंटीमीटर की दूरी रखें। बीज (सेट) को 3 से 4 सेंटीमीटर गहराई में बोएं, इससे अच्छा अंकुरण होता है और नमी भी बनी रहती है।
सेट उपचार (Sett treatment)
गन्ने की खेती (Sugarcane farming) करते समय यह ध्यान देना चाहिए कि बीज के लिए सेट 6 से 7 महीने पुराने स्वस्थ पौधे से लिया जाए और वह कीटों व बीमारियों से पूरी तरह मुक्त हो। रोगग्रस्त सेट का उपयोग न करें क्योंकि वे ठीक से अंकुरित नहीं होते और पौधों में रोग फैलने की संभावना ज्यादा होती है। जिस फसल से बीज लिया जाता है उसे बुवाई से एक दिन पहले काटा जाना चाहिए ताकि उच्च और समान अंकुरण हो।
गन्ने के सेट को TRICHO-PEP H (ट्राइकोडर्मा हरजियानम 1.0% WP) की 10 ग्राम मात्रा को 50 मि.ली. पानी में घोलकर अच्छी तरह मिलाकर उपचारित किया जाना चाहिए। यह उपचार लाल सड़न और सेट रॉट जैसी प्रमुख फफूंद जनित बीमारियों से बचाव हेतु प्रभावी होता है। तैयार घोल को 1 किलोग्राम बीज पर समान रूप से छिड़कें और बुवाई से पहले सेट को छायायुक्त स्थान पर 20–30 मिनट तक सुखाना आवश्यक है।
गन्ने की बुवाई का समय (Sugarcane sowing time)
गन्ने की किस्म के अनुसार गन्ने की बुवाई अलग-अलग समय पर की जाती है। एक वर्षीय किस्मों के लिए, गन्ने की बुवाई का समय फरवरी-मार्च के महीने में होता है और अर्द्धवर्षीय गन्ने की बुवाई जुलाई-अगस्त के महीने में की जाती है।
बुवाई की विधि (Sowing method)
गन्ने की बुवाई के लिए अलग-अलग विधियाँ हैं जिनमें समतल रोपण, फ़रो रोपण, ट्रेंच विधि और संशोधित ट्रेंच प्रणाली शामिल हैं।
खरपतवार नियंत्रण (Weed management in Sugarcane farming)
गन्ने की खेती (Sugarcane farming) में खरपतवार काफी नुकसान पहुंचाते हैं क्योंकि ये पौधे से पानी, पोषक तत्व और जगह के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। अगर समय पर इनका नियंत्रण न किया जाए, तो ये तेजी से बढ़ते हैं और मुख्य फसल की बढ़वार और उत्पादन को कम कर देते हैं। गन्ने की खेती (Sugarcane farming) करते समय आमतौर पर पाई जाने वाली खरपतवारों में पोर्टुलाका, डिजिटेरिया, बोरहाविया, यूफोर्बिया और ट्रिबुलस शामिल हैं। इन पर नियंत्रण के लिए बुवाई के 3 दिन के भीतर Bironi (Atrazine 50% WP) का उपयोग प्रभावी रहता है। इसे बुवाई के तीन दिन बाद 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की खुराक के साथ इस्तेमाल किया जाता है, यह खरपतवार के प्रकार और खरपतवार के संक्रमण के अनुसार अलग-अलग हो सकता है।
गन्ने की खेती में सिंचाई (Irrigation in Sugarcane farming)
पौधे की वृद्धि और उपज में सिंचाई की अहम भूमिका होती है। नमी की इष्टतम आपूर्ति के लिए नियमित सिंचाई की ज़रूरत होती है। गन्ने की बुआई से लेकर पकने तक कुल 1500 mm से 2500 mm पानी की आवश्यकता होती है। सिंचाई की आवृत्ति मिट्टी के प्रकार, जलवायु परिस्थितियों और पानी की उपलब्धता पर निर्भर करती है। दोमट मिट्टी में हर 10 से 11 दिन में और भारी चिकनी मिट्टी में हर 16 से 20 दिन में खेत में पानी दें। अगर बारिश अच्छी हो रही हो, तो सिंचाई की संख्या कम कर दें।
गन्ने की खेती में विशेष अभ्यास (Special practices in Sugarcane farming)
गन्ने में मिट्टी चढ़ाना (Earthing up in Sugarcane)
गन्ने की सूखी, पीली-हरी पत्तियां हटाना (Detrashing in Sugarcane)
गन्ने के पौधों को सहारा देने के लिए एक-दूसरे से बाँधना ताकि वे गिरें नहीं। (Propping in Sugarcane)
गन्ने की खेती में आने वाले प्रमुख रोग (Disease in Sugarcane farming)
गन्ना कई फफूंद, जीवाणु और विषाणु रोगों के प्रति संवेदनशील है जो उपज और गुणवत्ता को काफी कम कर सकते हैं। गन्ने को प्रभावित करने वाली प्रमुख बीमारियों में शामिल हैं:
लाल सड़न (Red rot): यह सबसे विनाशकारी फफूंद रोगों में से एक है, जो तनों को सड़ा देती है और उनमें लाल रंग का धब्बा दिखने लगता है।
सेट रोट (Sett rot): यह रोग बीज सेट को प्रभावित करता है, जिससे खराब अंकुरण होते है और अंकुर मर जाते हैं।
स्मट (Smut): स्मट की विशेषता काले चाबुक जैसी संरचनाओं की उपस्थिति है, यह गन्ने की वृद्धि और चीनी की मात्रा को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
विल्ट (Wilt): यह रोग तनों के सूखने और सिकुड़ने का कारण बनता है, जो अक्सर मिट्टी से उत्पन्न होने वाले रोगजनकों की वजह से होता है।
गन्ने का ग्रासी शूट रोग (Grassy shoot of Sugarcane): यह एक फाइटोप्लाज्मा रोग है जो अत्यधिक टिलरिंग और बौने, घास जैसे टहनियों का कारण बनता है।
लीफ स्पॉट (Leaf spot): इस रोग में पत्तियों पर छोटे भूरे रंग के घाव दिखाई देते हैं, जो प्रकाश संश्लेषक क्षेत्र को कम करते हैं।
रस्ट (Rust): रस्ट के कारण पत्तियों पर लाल-भूरे रंग के दाने हो जाते हैं, जिससे पौधे की शक्ति प्रभावित होती है।
Disease | Fungicide | Dosage |
लाल सड़न (Red rot) | TRICHO-PEP H (Trichoderma harzianum 1.0% WP) | सेट उपचार 10 ग्राम/किग्रा सेट |
सेट रोट (Sett rot) | TRICHO-PEP H (Trichoderma harzianum 1.0% WP) | सेट उपचार 10 ग्राम/किग्रा सेट |
स्मट (Smut) | DIZOXY (Azoxystrobin 18.2% + Difenoconazole 11.4% SC) | 1 मिली/लीटर पानी |
विल्ट (Wilt) | CLAUN (Carbendazim 12% + Mancozeb 63% WP) | 3-4 ग्राम/लीटर पानी |
ग्रासी शूट (Grassy shoot) | FIKRI 4 (Fipronil 4% + Thiamethoxam 4% SC) वेक्टर को नियंत्रित करने के लिए | 2 मिली/लीटर पानी |
रस्ट (Rust) | CHLOPER (Copper Oxychloride 50% WP) | 2 मिली/लीटर पानी |
गन्ने की खेती में आने वाले प्रमुख कीट (Pests in Sugarcane farming)
गन्ना विभिन्न विकास चरणों में विभिन्न कीटों के लिए अतिसंवेदनशील होता है। ये कीट मिट्टी के ऊपर और नीचे दोनों जगह फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे काफी नुकसान होता है:
प्रारंभिक शाखा छेदक (Early shoot borer): यह युवा शूट (Initial stage of crop) पर हमला करता है, जिससे डेड हार्ट (Dead heart) के लक्षण होते हैं।
व्हाइट ग्रब (White grub): यह मिट्टी में रहने वाला कीट है जो जड़ों को खाता है, जिससे पौधा कमज़ोर हो जाता है।
दीमक (Termites): दीमक जड़ों जैसे भूमिगत भागों को खाते हैं और ज़्यादातर रैटून फ़सल में पाए जाते हैं।
पाइरिला (Pyrilla): यह एक रस चूसने वाला कीट है जो पत्तियों को सूखने और कालिख जैसी फफूंद (सूटी मोल्ड) विकसित होने का कारण बनता है।
रूट बोरर (Root borer): यह भूमिगत शूट बेस को नुकसान पहुँचाता है, जिससे विकास रुक जाता है।
तना छेदक (Stalk borer): यह परिपक्व तनों में छेद करता है, जिससे रस की गुणवत्ता और उपज कम हो जाती है।
टॉप बोरर (Stalk borer): यह पौधे के ऊपरी हिस्से को नुकसान पहुँचाता है जिससे विकास विकृत हो जाता है।
Insects | Insecticide | Dosage |
तना छेदक (Stalk borer) | PEPORA (Chlorantraniliprole 18.5% SC)Or PEPORA GR (Chlorantraniliprole 0.4% GR) | 0.6 मिली/लीटर पानी7.5 किलोग्राम प्रति एकड़ |
टॉप बोरर (Top Borer) | PEPORA (Chlorantraniliprole 18.5% SC)Or PEPORA GR (Chlorantraniliprole 0.4% GR) | 0.6 मिली/लीटर पानी7.5 किलोग्राम प्रति एकड़ |
रूट बोरर (Root borer) | PEPORA (Chlorantraniliprole 18.5% SC)Or PEPORA GR (Chlorantraniliprole 0.4% GR) | 0.6 मिली/लीटर पानी7.5 किलोग्राम प्रति एकड़ |
प्रारंभिक शाखा छेदक (Early shoot borer) | PEPORA (Chlorantraniliprole 18.5% SC)Or PEPORA GR (Chlorantraniliprole 0.4% GR) | 0.6 मिली/लीटर पानी7.5 किलोग्राम प्रति एकड़ |
दीमक (Termites) | FIKRI 4 (Fipronil 4% + Thiamethoxam 4% SC) | 1.5 मिली/लीटर पानी |
पाइरिला (Pyrilla) | FIKRI 4 (Fipronil 4% + Thiamethoxam 4% SC) | 1.5 मिली/लीटर पानी |
व्हाइट ग्रब (White grub) | FIKRI 4 (Fipronil 4% + Thiamethoxam 4% SC) | 1.5 मिली/लीटर पानी |
निष्कर्ष
भारत की कृषि अर्थव्यवस्था में गन्ने की खेती (Sugarcane farming) का बहुत महत्व है। यह न केवल चीनी और इथेनॉल उत्पादन में योगदान देता है, बल्कि लाखों किसानों को स्थायी आजीविका भी प्रदान करता है। गन्ने की खेती (Sugarcane farming) के लिए किस्मों के उचित चयन, समय पर बुवाई, प्रभावी कीट और रोग प्रबंधन और वैज्ञानिक खेती के तरीकों को अपनाने से किसान उच्च पैदावार और बेहतर मुनाफ़ा प्राप्त कर सकते हैं। जैविक और कृषि रसायनों का एकीकृत उपयोग, कुशल जल प्रबंधन और नियमित क्षेत्र संचालन जैसे मिट्टी चढ़ाना और मिट्टी हटाना फसल के स्वास्थ्य और उत्पादकता को और बढ़ाता है। चूंकि गन्ना आधारित उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है, इसलिए गन्ने की खेती को अधिक लाभदायक और पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए टिकाऊ और आधुनिक खेती के तरीकों को अपनाना महत्वपूर्ण है।
Frequently Asked Questions (FAQs)
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