
भिंडी की खेती (Bhindi ki kheti) के लिए उपयुक्त जलवायु
भिंडी की खेती (Bhindi ki kheti) के लिए सही तापमान और वर्षा का होना अति आवश्यक है। अगर यह उपयुक्त न हुए तो पैदावार में कमी होगी और किसान को कम लाभ होगा। भिंडी की खेती (Bhindi ki kheti) के लिए 20-35° C का तापमान उपयुक्त होता है और अलग अलग अवस्था में देखें तो, बुवाई के समय का तापमान 20 से 29° C और हार्वेस्टिंग के समय 25 से 35° C होना चाहिए। भिंडी की खेती (Bhindi ki kheti) के लिए 1000 mm यानि 100 cm की वर्षा की आवश्यकता होती है।
भिंडी कब बोई जाती है (Time of okra sowing)
गर्मियों की फसल के लिए भिंडी की बुवाई फरवरी-मार्च में करें तथा वर्षा कालीन फसल के लिए जून जुलाई में बुवाई की जाती है।
भिंडी की प्रसिद्ध किस्में (popular varieties)
किस्में (Varieties)
- अर्का अनामिका (Arka Anamika)
- अर्का अभय (Arka Abhay)
- परभणी क्रांति (Parbhani Kranti)
- वर्षा उपहार (Varsha Uphar)
- राधिका भिंडी (Radhika Bhindi)
- सम्राट भिंडी (Samrat Bhindi)
- पूसा ए-4 (Pusa A-4)
- पंजाब-7 (Punjab-7)
- हाइब्रिड (Hybrid)
- COBhH 1, COBhH 3 और Bhindi Hybrid CO 4
भिंडी की बीज दर (Seed rate of okra)
भिंडी की खेती (Bhindi ki kheti) में उचित मात्रा में पौधों का होना अति आवश्यक है। अगर पौधों की संख्या कम हुई तो खेत में खाली जगह रह जाएगी और अगर ज्यादा संख्या हुई तो पौधों के बीच पानी और न्यूट्रिएंट्स के लिए मुक़ाबला होगा जो की पैदावार को कम करेगा। इस लिए सही बीज दर का होना बहुत जरूरी है। भिंडी के वैरायटी वाले बीजों के लिए 8 kg प्रति हेक्टेयर या 3.5-4 kg प्रति एकड़ और हाइब्रिड बीजों के लिए इसकी मात्रा 2.5 kg प्रति हेक्टेयर या 1 kg प्रति एकड़ उचित रहता है।
बीज उपचार (Seed treatment)
भिंडी के बीज की बुवाई से पहले उसका उपचार TRICHO-PEP V (Trichoderma viride) 10 g/kg बीज या Pseudo-pep (Pseudomonas fluorescens) 10-15 g/kg बीज के साथ करें जिससे फफूंद वाली बीमारियों से बचा जा सके और बीज का अंकुरण भी अच्छे से हो।
भिंडी के पोधो के बीच में दूरी (Spacing)
भिंडी के पौधों को कुछ इस प्रकार बोना चाहिए की पौधों के बीच 30 cm की दूरी हो और कतार से कतार की दूरी 45 cm रहे। भिंडी के बीज बोते समय ध्यान रखे की प्रति हिल तीन बीज डाले फिर 10 दिन बाद जब बीज अंकुरित हो जाये तो उसमे बस एक स्वस्थ सीडलिंग छोड़ दे बाकी की दो सीडलिंग्स को निकल दें।
भिंडी की फसल में उर्वरकों का सही प्रयोग और विधि
(Fertilizer management in okra)
भिंडी की खेती (Bhindi ki kheti) में अच्छे उत्पादन के लिए 15 से 20 टन गोबर की खाद को 4-5 kg TRICHO-PEP V (Trichoderma viride) प्रति टन खाद में मिलकर प्रयोग करे यह खेत में पोरोसिटी (porosity) और मिट्टी में पानी को रोकने की क्षमता बढायेगी और TRICHO-PEP V फफूंद वाली बीमारियों से सुरक्षा करेगा। इसके साथ-साथ 80 kg नाइट्रोजन, 60 kg फॉस्फोरस और 60 kg पोटाश प्रति हेक्टेयर दें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय ही दे दी जाती है। नाइट्रोजन की बची हुई आधी मात्रा बाद में 30 दिनों के अंतर पर देना उचित होता है जिससे फसल को पुरे टाइम उचित नाइट्रोजन प्राप्त होती रहे। भिंडी में बेहतर फूलों के लिए आप Aminofert Gold का 200-400 ml प्रति एकड़ इस्तमाल कर सकते है। फूल आने के बाद भिंडी का आकार बढ़ाने के लिए Zybgro (Gibberellic Acid 0.001% L) का 150-200 ml प्रति एकड़ का प्रयोग करें।
भिंडी की फसल के मुख्य कीट (Pest of okra)
भिंडी की खेती (Bhindi ki kheti) करते समय विभिन्न प्रकार के कीट नुकसान पहुँचाते है यह कीट पूरी फसल को बर्बाद कर सकते है। भिंडी के मुख्य कीटों में शामिल है शाख और फल का कीट (Okra Shoot and Fruit Borer), भिंडी में फल छेदक इल्ली (Bhindi fruit borer), वीविल (Shoot weevil), पत्ती लपेटक (Leaf roller), सेमीलूपर (Semilooper), सफ़ेद मक्खी (Whitefly) और चेपा (Aphids) है।
जिसमे से शाख और फल का कीट (Okra Shoot and Fruit Borer), भिंडी में फल छेदक इल्ली (Bhindi fruit borer), वीविल (Shoot weevil), पत्ती लपेटक (Leaf roller), और सेमीलूपर (सेमीलूपर) को नियंत्रित करने के लिए आप EMA PEP-5 (Emamectin Benzoate 5% SG) 200 gm/acre का उपयोग कर सकते हैं और सफ़ेद मक्खी (Whitefly) और चेपा (Aphids) की रोक थाम के लिए PEPMIDA 30 (Imidacloprid 30.5% SC) 100 ml/ha का उपयोग किया जा सकता है। भिंडी के कीटों को प्राकृतिक तरीके से भी रोका जा सकता है इसके लिए BAREEK (Beauveria bassiana) का उपयोग 5 gm/ltr पानी में मिला कर छिड़काव विधि से खेत में लगाए यह सफ़ेद मक्खी से वायरस के प्रसार की रोकथाम में सहायता करेगा।
भिंडी में मुख्य बीमारिया (Important disease of okra)
भिंडी की खेती (Bhindi ki kheti) करते समय फफूंद वाली बिमारियों का बहुत ख़याल रखना पड़ता है। इन बीमारियों का अगर समय से बचाव न किया जाये तो ये किसान को काफी नुकसान पहुँचा सकती है इसलिए इनका तुरंत निवारण जरूरी होता है। भिंडी की मुख्य बीमारिया है पाउडरी मिल्डू (Powdery mildew), फ्यूजेरियम विल्ट (Fusarium wilt) और सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट्स (Cercospora Leaf Spots)। ये फफूंद वाली बीमारियाँ है और इनके इलाज के लिए CHLOPER (Copper Oxychloride 50% WP) अथवा CLAUN (Carbendazim 12% + Mancozeb 63% WP) का उपयोग किया जाता है। इसकी मात्रा 700 gm/acre रखी जाती है।
दूसरी महत्वपूर्ण बीमारियों में से एक है येलो वीन मोज़ेक जो एक वायरल बीमारी है। इसके उपचार के लिए वायरस के वेक्टर को कंट्रोल करना जरूरी होता है। इसका वेक्टर सफ़ेद मक्खी (whitefly) है जिसको कण्ट्रोल करने के लिए पहले NIIMPA 10000 (Azadirachtin 1% 10000 PPM) 2.6 ml/ltr के घोल का उपयोग करें। इसके घोल के छिड़काव करने के एक सप्ताह बाद BAREEK (Beauveria bassiana) को 5 gm/ltr पानी में मिला कर छिड़काव विधि से खेत में डालें। ऐसा करने से सफ़ेद मक्खी को पूरी तरह से रोका जा सकता है।
निष्कर्ष
भिंडी (ओकरा) की खेती लगातार बाजार की मांग और ज्यादा मूल्य के कारण एक लाभदायक अवसर प्रदान करती है। सही जलवायु परिस्थितियों को सुनिश्चित करने, उपयुक्त किस्मों का चयन करके, उचित बीज दर और प्रभावी कीट (pest management) और रोग प्रबंधन प्रथाओं को लागू करने से, किसान उच्च पैदावार और बेहतर-गुणवत्ता वाले उपज प्राप्त कर सकते हैं। स्वस्थ फसल विकास के लिए कार्बनिक खाद, संतुलित उर्वरकों और कीटों और फंगल रोगों के खिलाफ समय पर सुरक्षा उपायों का नियमित उपयोग स्वस्थ फसल विकास के लिए महत्वपूर्ण है। इन प्रथाओं को अपनाने से, किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं और स्थायी कृषि (sustainable agriculture) में योगदान कर सकते हैं। सफल भिंडी खेती न केवल एक लोकप्रिय सब्जी बढ़ने के बारे में है, बल्कि अधिकतम लाभ के लिए स्मार्ट और समय पर तकनीकों को लागू करने के बारे में भी है।