
कपास की खेती (Cotton cultivation)
कपास (Cotton) एक रेशों (fiber) वाली फसल है और इसकी खेती व्यावसायिक फसल के रूप में की जाती है। कपास, कपड़ा उद्योग में प्रयुक्त होने वाले फाइबर का मुख्य स्रोत है तथा इसके अन्य उपयोग भी हैं, जैसे कि बिनौला तेल। कपास एग्रीकल्चर की अर्थव्यवस्था में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कपास की खेती करके किसान कई गुना मुनाफा कमा सकते हैं पर इसकी खेती करने के लिए सही जानकारी का होना अत्यंत आवश्यक है। आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से जानेंगे कि वैज्ञानिक तरीके से कैसे कपास की खेती की जा सकती है और इसमें लगने वाली बीमारियों और कीटों से कैसे बचा जा सकता है।
कपास की खेती के लिए जलवायु की आवश्यकता (Environment and climate)
कपास की खेती के लिए 15°C से 35°C के बीच का तापमान उपयुक्त माना जाता है। अगर फसल चक्र के अलग-अलग हिस्सों की बात करें तो बुवाई के समय तापमान 25 से 35° C और हार्वेस्टिंग के समय पर 15 से 25° C उचित होता है। कपास की खेती के लिए उचित मात्रा में वर्षा का होना भी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि 60 प्रतिशत इसकी खेती भारत में वर्षा आधारित की जाती है। इसकी खेती के लिए 55 से 100 cm की वर्षा की जरूरत होती है।
कपास की खेती के लिए उपयुक्त मृदा (Best soil for Cotton cultivation)
कपास की खेती के लिए मिट्टी गहरी नरम और अच्छे जल निकाशी वाली होनी चाहिए जिससे कि पानी जमा न हो। कपास की खेती के लिए मिट्टी का pH अगर 6 से 8 हो तो ये अच्छा होता है। मिट्टी की गहराई 20-25 cm से कम नहीं होनी चाहिए। कपास काली मिट्टी में सबसे अच्छी तरह उगती है।
कपास की प्रसिद्ध किस्में (Varieties of Cotton)
RCH134Bt, RCH 317Bt, MRC 6301Bt, MRC 6304BT, Ankur 651, Whitegold, LHH 144, F1861, F1378, F846, LHH 1556, Moti, LD 694, LD 327
देसी किस्में
LD 1019, FMDH 9, FDK 124
प्रसिद्ध किस्में
BCHH 6488 BG II
BCHH 6588 BG II
कपास की अमेरिकन किस्में
PAU Bt 1, RCH 650 BG II, NCS 855 BG II, ANKUR 3028 BG II, MRC 7017 BG II, MRC 7031 BG II
दूसरे राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और तमिलनाडु में उगाई जाने वाली किस्में
PCH 406 BT, Sigma Bt, MRC 6025 Bt, SDS 1368 Bt, SDS 9Bt, Ankur 226BG, NAMCOT 402 Bt, GK 206 Bt, 6317 Bt, 6488 Bt, MRC 7017 BG II, MRC 7031 BG II, NCS 145 BG II, ACH 33-2 BG II, JKCH 1050 Bt, MRC 6029 Bt, NCS 913 Bt, NCS 138 Bt, RCH 308 Bt, RCH 314 Bt
कपास की बीज दर और अंतराल (Seed rate of Cotton and spacing)
- देसी कपास के लिए बीज दर 6-8 kg/ha और पौधे से पौधे की दूरी 30 cm और लाइन से लाइन की दूरी 60 cm होनी चाहिए।
- हाइब्रिड कपास के लिए बीज दर 2-3 kg/ha और पौधे से पौधे की दूरी 60 cm और लाइन से लाइन की दूरी 90 cm रखें।
- बीटी कपास (BT Cotton) के लिए बीज दर 1.5-2.5 kg/ha और पौधे से पौधे की दूरी 45 cm और लाइन से लाइन की दूरी 90 cm रखें।
- बीज दर और स्पेसिंग, ये दोनों ही बीजों की किस्म और मृदा उर्वरता (Soil fertility) पर निर्भर करते हैं। इनको बीज की किस्म और मृदा उर्वरता के हिसाब से बदला जा सकता है।
खेत की तैयारी (Field preparation)
खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए क्योंकि कपास गहरी जड़ों वाली फसल है। इसकी जड़ लगभग 200 से 250 cm की गहराई तक जाती है इसलिए इसको गहरी जुताई की जरूरत होती है ताकि मृदा नरम रहे और जड़ आसानी से अपनी जगह बना सके। जुताई के बाद खेत को लेवल करने के लिए लेवलर का प्रयोग करें।
बीज का उपचार (Seed treatment)
बीज को रस चूसने वाले कीट (Sucking pest) से बचने के लिए बीज का उपचार PEPMIDA 30 (Imidacloprid 30.5% SC) के साथ 5-7 ml/kg बीज के साथ करें या TRIOMETHOXAM 25 (Thiamethoxam 25% WG) के साथ 3-4 gm/kg बीज बुवाई से पहले करें।
अच्छे अंकुरण और फंगस वाली बीमारियों से बचने के लिए TRICHO-PEP H (Trichoderma harzianum 1.0% W.P) 10 ग्राम प्रति किलो बीज या Peptilis (Bacillus subtilis-1.5%AS) 4 ग्राम प्रति किलो बीज के साथ बीज उपचार करना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
बुवाई के बाद 50-60 दिन तक खेत खरपतवार रहित रखना जरूरी है, वरना पैदावार में 60-80% तक कमी आ सकती है। नियंत्रण के लिए हाथ से, मशीन से और रसायनों का संयोजन करें।
- पहली सिंचाई से पहले और हर सिंचाई के बाद गोडाई करें।
- गाजर बूटी (Parthenium hysterophorus) को खेत के पास न उगने दें, इससे मिली बग का खतरा बढ़ता है।
- बुवाई के तुरंत बाद BULDAN (Pendimethalin 30% EC) का 1-1.5 L/एकर स्प्रे करें।
- 6-8 सप्ताह बाद, पौधे 40-45 सेमी हो जाएं तो Round Pep (GLYPHOSATE 41% S.L.) 1 लीटर/एकड़ में स्प्रे करें।
- स्प्रे सुबह या शाम के समय ही करें।
कपास की सिंचाई
फसल की अवस्था | सिंचाई का समय (बिजाई के बाद) |
टहनियों का विकास | 45–55 दिन |
फूल व फल निकलने का समय | 75–85 दिन |
बॉल बनने का समय | 95–105 दिन |
बॉल का विकास व खिलने का समय | 115–125 दिन |
मुख्य बिंदु:
- कुल 4–6 सिंचाइयों की आवश्यकता (वर्षा की तीव्रता पर निर्भर)।
- पहली सिंचाई 4–6 सप्ताह बाद करें; शेष 2–3 सप्ताह के अंतराल पर।
- छोटे पौधों में जल जमाव से बचें।
- बेहतर फूलन के लिए Aminofert gold का 200-400 ml प्रति एकड़ इस्तमाल करें। फूल व बॉल बनने के समय पानी की कमी न होने दें।
- 33% बॉल खिलने के बाद अंतिम सिंचाई करें; इसके बाद सिंचाई रोक दें।
रोग और रोकथाम (Disease of Cotton and their management)
कपास की खेती में विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ लगती हैं जिनका समय से उपचार जरूरी होता है ताकि किसान को फसल में नुकसान का सामना न करना पड़े। कपास की बीमारियों में शामिल है मुरझाना, ऑल्टरनेरिया पत्तों के धब्बे, पत्तों पर धब्बा रोग, एन्थ्रेक्नोज़, और जड़ गलन।
बीमारियां | इलाज | मात्रा |
मुरझाना (Wilting) | Peptilis (Bacillus subtilis 1.5%AS) | 10 ml/kg के साथ बीज उपचार |
आल्टरनेरिया पत्तों के धब्बे (Alternaria leaf spot) | CLAUN (Carbendazim 12% + Mancozeb 63% WP) | 2.5 g/l छिड़काव करें |
पत्तों पर धब्बा रोग (Bacterial blight) | CHLOPER (Copper Oxychloride 50% WP) | 3-5 g/l छिड़काव करें |
एंथ्राकनोस (Anthracnose) | CHLOPER (Copper Oxychloride 50% WP) | 3-5 g/l छिड़काव करें |
जड़ गलन (Root rot) | CLAUN (Carbendazim 12% + Mancozeb 63% WP) | 2.5 g/l छिड़काव करें |
हानिकारक कीट और रोकथाम (Pest of Cotton)
कपास की फसल में अनेक प्रकार के कीट नुकसान करते हैं जिनमें से मुख्य कीट हैं हेलिकोवर्पा सुंडी, गुलाबी सुंडी, तंबाकू सुंडी, तेला, धब्बेदार सुंडी, मिलीबग, सफेद मक्खी, या थ्रिप्स।
कीट | कीटनाशक | मात्रा |
हेलिकोवर्पा सुंडी (Helicoverpa bollworm) | Fifty-O-5 (Chlorpyriphos 50% + Cypermethrin 5% EC) | 1.5-2 ml/l |
गुलाबी सुंडी (Pink bollworm) | Fifty-O-5 (Chlorpyriphos 50% + Cypermethrin 5% EC) | 1.5-2 ml/l |
तंबाकू सुंडी (Tobacco Cutworm) | Fifty-O-5 (Chlorpyriphos 50% + Cypermethrin 5% EC) | 1.5-2 ml/l |
तेला (Cotton aphid) | Fifty-O-5 (Chlorpyriphos 50% + Cypermethrin 5% EC) | 1.5-2 ml/l |
धब्बेदार सुंडी (Spotted bollworms ) | Fifty-O-5 (Chlorpyriphos 50% + Cypermethrin 5% EC) | 1.5-2 ml/l |
थ्रिप्स (Thrips) | Fifty-O-5 (Chlorpyriphos 50% + Cypermethrin 5% EC) | 1.5-2 ml/l |
सफेद मक्खी (Whitefly) | Fifty-O-5 (Chlorpyriphos 50% + Cypermethrin 5% EC) | 1.5-2 ml/l |
कीटों के जैविक नियंत्रण के लिए NIIMPA 3000 (Azadirachtin 0.3% 3000 PPM) 3-5 मिली/लीटर पानी और BAREEK (Beauveria bassiana) 5 ग्राम/लीटर पानी का उपयोग करें।
निष्कर्ष
कपास की खेती, जिसे अक्सर “सफेद सोने की खेती” कहा जाता है, भारत की कृषि अर्थव्यवस्था और कपड़ा उद्योग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वैज्ञानिक प्रथाओं को अपनाने से – जैसे कि सही किस्म का चयन करना, उचित बीज उपचार करना, कीटों और रोगों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना, और उपयुक्त मिट्टी और जलवायु स्थितियों का उपयोग करना – किसान उच्च पैदावार और बेहतर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। कपास की बढ़ती मांग के साथ, कुशल और पर्यावरण के अनुकूल खेती के तरीकों से उत्पादन और स्थिरता को और बढ़ावा मिल सकता है। चाहे आप एक शुरुआती या एक अनुभवी उत्पादक हैं, इन आधुनिक कपास की खेती तकनीकों का उपयोग करने से आपको फसल के नुकसान को कम करने में मदद मिल सकती है।