Lauki ki Kheti: लौकी की खेती कैसे शुरू करें – पूरी जानकारी

Lauki ki Kheti: लौकी की खेती कैसे शुरू करें – पूरी जानकारी

लौकी भारत में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण सब्जी है, जिसका उपयोग सब्जी बनाने के साथ-साथ रस और औषधीय गुणों के लिए भी किया जाता है। इसकी खेती कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली होती है। आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से जानेंगे कि लौकी की खेती (lauki ki kheti) कैसे करें और आप इससे अधिक से अधिक मुनाफ़ा कैसे बनाएं।

लौकी की खेती (lauki ki kheti) में कई चुनौतियाँ होती हैं जैसे की कीटों और बीमारियों का प्रकोप, जलभराव, और उचित जल निकासी की कमी। इसीलिए बहोत से किसानो को इस खेती में नुकसान का सामना भी करना पड़ता है। आइये जानते है लौकी की खेती (lauki ki kheti) को मुनाफेदार बनाने के लिए किन किन चीजों के खास ख्याल रखना है।

Lauki ki kheti ki | किस्में

कुछ प्रमुख लौकी की किस्में हैं:

    • पुसा नवीन
    • पुसा संगीता
    • काशी गौरव
    • कोयंबटूर लौकी-1
    • अर्का बहार
lauki ki kheti

जलवायु और मिट्टी

    • लौकी की खेती (lauki ki kheti) के लिए गर्म और नमी वाली जलवायु सबसे अच्छी होती है।
    • 25°C से 35°C तापमान लौकी के बीजो के अंकुरण के लिए बढ़िया होता है। इसी तापमान रेंज में लौकी की वृद्धि तेजी से होती है।
    • मिट्टी का pH मान 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
    • इसे खेती में दोमट मिट्टी सबसे उचित मानी जाती है जिसमें भरपूर जैविक पदार्थों हो। मिटटी में जल निकासी भी अच्छी होनी चाहिए। 

खेत की तैयारी

    • सबसे पहले मिटटी को भुरभुरी करने के लिए खेत की 2-3 बार गहरी जुताई करें।
    • खेत में गोबर खाद डालें। प्रति एकड़ 15-20 टन खाद प्रयाप्त रहेगी।
    • अच्छी जल निकासी के लिए खेत में नालियां तैयार करें।
    • PSEUDO-PEP (स्यूडोमोनास) को 2.5 किलोग्राम/हेक्टेयर के हिसाब से 50 किग्रा FYM के साथ खेत में डालें।
    • अच्छी जल निकासी के लिए खेत में 1-1.5 मीटर चौड़ी और 20-25 सेंटीमीटर ऊँची क्यारी (बेड) तैयार करें।
    • बेसल डोज़ के तौर पर नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (NPK) संतुलित मात्रा में दें। जैविक खेती के लिए नीम खली, कंपोस्ट और हरी खाद का प्रयोग किया जा सकता है।

बीज बोने का समय और तरीका

    • लौकी की बुवाई गर्मी में फरवरी – मार्च और वर्षा ऋतु में जून – जुलाई के बीच की जाती है।
    • 1.5 किलोग्राम बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर के लिए पर्याप्त है।
    • बीजों को 2-3 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद बोना चाहिए जिससे अंकुरण अच्छा होता है।
    • पौधों की कतार से कतार की दूरी 2-2.5 मीटर और पौधों के बीच 1-1.5 का की दूरी रखें।
    • बीज को 2-3 सेमी गहराई में बोएं।
    • फफूंद रोगों से बचाव के लिए बीजों का PSEUDO-PEP (स्यूडोमोनास) से बीज उपचार करें।

खाद एवं उर्वरक

लौकी की खेती में (lauki ki kheti) लौकी को 100-120 किलोग्राम/एकड़ नाइट्रोजन (N) , 50-60 किलोग्राम/एकड़ फॉस्फोरस (P) और 50-60 किलोग्राम/एकड़ पोटाश (K) की आवश्यकता होती है।

बुवाई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा डाली जाती है। बचे हुआ नाइट्रोजन की मात्रा फल लगने के समय दें।

सिंचाई 

    • गर्मियों में 4-5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
    • सर्दियों में 7-10 दिन के अंतराल पर पानी देना पर्याप्त होता है।
    • पौधों में फूल आने और फल बनने के समय सिंचाई करना जरूरी होता है।
    • ज्यादा पानी जमा न हो, इसके लिए सही जल निकासी का ध्यान रखें। हो सके तो ड्रिप सिंचाई का उपयोग करे जिससे पानी की बचत होती है और पैदावार भी बढ़ती है।

फसल वृद्धि के लिए

लौकी की खेती में (lauki ki kheti) फसल की वृद्धि के लिए बायोस्टिमुलेंट जैसे अमिनोफर्ट गोल्ड (AMINOFERT GOLD LIQUID) का उपयोग करें। बढ़िया उपज के लिए इसकी मात्रा 400 से 600 ml प्रति एकड़ रखें। इसमें अमीनो एसिड, कार्बन और सूक्ष्म पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। यह मिट्टी और फसलों के लिए एक बेहतरीन पोषण स्रोत है। पौधे के विकाश के लिए Pep gibb जैसे ग्रोथ रेगुलेटर का छिड़काव फसल लगाने के 25 से 30 दिन बाद करें। इसकी मात्रा 6 gram से 8 gram प्रति एकड़ रखना उत्तम होता है।

फसल सुरक्षा

कीट नियंत्रण

      • फल छेदक कीट और लाल कद्दू भृंग – यह कीट लौकी के फलों को नुकसान पहुँचाते हैं। BAREEK (बीवेरिया बैसियाना) जो की एक जैविक कीटनाशक है उसका छिड़काव करें।

      • सफेद मक्खी और एफिड्स – ये रस चूसने वाले कीट पत्तियों को कमजोर कर देते हैं। BAREEK का छिड़काव बेहतर रहेगा।

    रोग प्रबंधन

        • पाउडरी मिल्ड्यू – यह रोग सफेद चूर्ण जैसा दिखता है। Peptilis का छिड़काव करें जो की एक जैविक फफूंदनाशी है।

        • डाउनी मिल्ड्यू – यह पत्तियों पर पीले धब्बे बनाता है। TRICHO-PEP V या Peptilis का छिड़काव इसे नियंत्रित करता है।

      फसल की कटाई

          • बुवाई के लगभग 55-70 दिन बाद लौकी की तुड़ाई की जा सकती है।

          • जब फल मध्यम आकार के और नरम होते हैं, तभी उनकी तुड़ाई करनी चाहिए। अधिक समय तक बेल पर रहने से फल कठोर हो जाते हैं और बाजार में उनकी मांग कम हो जाती है।

        उत्पादन और लाभ

        सही देखभाल करने पर लौकी की खेती (lauki ki kheti) या लौकी की फसल से प्रति हेक्टेयर 250-300 क्विंटल उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। जैविक खेती अपनाने से उत्पादन की गुणवत्ता बेहतर होती है और बाजार में जैविक उत्पादों की अधिक कीमत मिलती है।

        सारांश

        लौकी की खेती (lauki ki kheti) किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय है। यदि उचित कृषि तकनीकों, जैविक कीटनाशकों और खाद का प्रयोग किया जाए, तो कम लागत में भी अच्छा उत्पादन संभव है। सही समय पर सिंचाई, खाद और फसल सुरक्षा का ध्यान रखकर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं।

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